स्कूल


खड़े होकर दूर आज मैं उस Building को देख रहा था,
खंडर हो चुकी उस इमारत में जैसे मुझे आज भी मेरा बचपन दिख रहा था,

न कोई HiFi Classrooms थे न ही बड़ा सा मैदान वहां,
वो तो बस एक छोटी सी जगह थी जहाँ बसा हुआ था मेरा सारा जहाँ,

कंधे पर Bag गले में Bottle लटकी होती थी,
कुछ तो खास था वहां जहाँ हर रोज मुझे जाने की थोड़ी जल्दी होती थी,

दोस्तो के साथ Corridor में शोर मचाना,
Plastic की बोतल को Football बनाना,
ख़ुद गलती कर फिर डाँट दोस्त को लगवाना,
बाद में रूठे अपने उस यार को मनाना,

तब तो जैसे दोस्तों से मिलने का बस स्कूल ही एक बहाना था,
वो तो जैसे खुशियों की गुफ़ा थी जहाँ छिपा मस्तियों का ढ़ेर सारा खज़ाना था,

वक्त होने पर Prayer के ये कमीने क्लास में ही छिप जाते थे,
और फिर जब पकड़े जाते तो सर से पैर दर्द तक के ये बहाने बनाते थे,
हाइट में छोटे पर सालों के बड़े बड़े वादे होते थे,
ऐसे तो Full-time पक्के दोस्ते  ...बाकि Lunch होने पर वही कमीने बस एक डब्बे में बिक जाते थे,

अब तो बचपन की ये खट्टी-मीठी यादें ...वो लड़ाई झगड़े भी अब तो ख़ूब याद आते है,
सोचता हूँ आज भी जब उन लम्हों को मैं ...
तो बस ये आँखे नम और होंठो पर एक Smile आजाती हैं!

Ⓒअनिकेत जैन

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